बुधवार, 1 अप्रैल 2020

"परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है सीखो और आगे बढ़ो " (Change is the law of nature, learn and move forward)


"परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है सीखो और आगे बढ़ो "
(Change is the law of nature, learn and move forward)

जैसा कि हम सभी ने अपने जीवन में कहीं ना कहीं कभी ना कभी यह पढ़ा या सुना जरूर होगा कि ,"परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है। " यह बात सत्य है और स्वप्रमाणित भी प्रकृति। 
 एक ही है  बस अपने  विभिन्न रूपों में स्थित हैl
 इसे समझा जा सकता है जैसे-
1. मानव प्रकृति ( प्रवृत्ति)
2. राक्षसी या दानवी प्रवत्ति 

वैसे तो यह एक मानसिकता है ,विचार है, सोच है लेकिन है तो प्रकृति के ही रूप।  

वैसे तो पृथ्वी भी खुद एक प्रकृति है एवं इस में स्थित समस्त  जलाशय, वन्य , वातावरण, जलवायु एवं पृथ्वी में स्थित समस्त पदार्थ ( ठोस, द्रव ,गैस ) प्रकृति के अभिन्न अंग हैं।  पिछले कुछ समय से प्राकृतिक संसाधनों के लगातार दोहन (  वन्य संपदा या खनिज आदि का अनियंत्रित उपयोग) से प्रकृति असंतुलित हो रहे हैं और इसके संतुलन हेतु ही  प्रकृति द्वारा समय-समय पर परिवर्तन किए जाते हैं।               
                              आज विश्व  में जो भयावह स्थिति उत्पन्न हो चुकी है।  जिसे  हम एक महामारी ( कोरोना वायरस)  के रूप में जानते है ,वास्तव में प्रकृति अपने आपको संतुलित कर रही है।    निश्चित ही यह एक दुखद घटना है ,लेकिन जैसा कि हम सभी जानते हैं  इस संसार में कुछ भी निरर्थक नहीं होता इस दुखद घटना के पीछे भी बहुत बड़ा अर्थ छुपा हुआ है इस संसार में बहुत से इंसान अपने आपको  सर्वश्रेष्ठ समझ बैठे थे , ठीक वैसे ही जैसा  कि- 
गलतफहमियों के सिलसिले आज इतने दिलचस्प हैं…
कि हर ईंट सोचती है, दीवार मुझ पर टिकी है!!


वास्तव में दीवार स्वयं में कुछ भी नहीं वह तो ईटों के सहयोग से बनी हुई है।
ठीक वैसे ही इंसान स्वयं में पूर्ण नहीं उसे प्रकृति की आवश्यकता होती है ,जैसे प्रकृति को इंसान की। 
 दोनों ही एक दूसरे के पूरक है। 
हर वह इंसान जो अपने आप को सर्वश्रेष्ठ समझा करते थे आज  अपने आपको इस महामारी के सामने असहाय महसूस कर रहे    हैं। 

हर एक बुराई के साथ-साथ अच्छाई भी चलती है। 

जहां एक ओर दानव रूपी  महामारी (कोरोनावायरस ) सभी को हानि पहुंचा रही है, वहीं इसके चलते बहुत से लोगों में बदलाव आया और उन्हें उनकी वास्तविकता का पता चला। 
                                                                जो इंसान पहले पैसा कमाने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता था अब वही इंसान अपने और अपनों के जीवन के लिए पैसा कमाना बंद कर दिया और अपने अपने घरों में सहमा बैठा है।  जहां एक ओर  कभी धर्म के नाम पर दंगे हुआ करते थे (जैसा कि हाल में ही दिल्ली में हुआ ) वहीं आज धर्म जाति समुदाय का भेदभाव भूलकर सभी अपने अपने जीवन की रक्षा हेतु तत्पर हैं।
                                                इंसान धर्म के नाम पर दंगे करता है ,जबकि यह धर्म कुछ भी नहीं। 

हम सब ब्रह्मांड  में उपस्थित एक ही ऊर्जा की वजह से संचालित है। "



"इस संसार में प्रकृति ने हर एक इंसान को बहुत सारी प्रतिभाएं उपहार स्वरूप दी है l जब कोई इंसान इन प्रतिभाओं एवं आंतरिक ऊर्जा का उपयोग कर किसी हुनर को सीख जाता है एवं उसका उपयोग स्वयं के विकास हेतु करता है ,तो  वास्तव में वह  श्रेष्ठ बनता है , इसके साथ ही यदि वह इन्हीं  हुनर एवं प्रतिभाओं का उपयोग कर दूसरे इंसानों के विकास एवं सहयोग हेतु तत्पर रहें ,तो उसके साथ ब्रह्मांड में उपस्थित   बाह्य ऊर्जा भी जुड़ जाती है और वह श्रेष्ठ से सर्वश्रेष्ठ बन जाता है।  "
"कहने का तात्पर्य यह है कि कोरोना जैसी महामारी एक समय उपरांत समाप्त हो जाएगी लेकिन हमें इससे मिले अनुभव से सीख ले कर जीवन में आगे बढ़ना होगा और धर्म जाति समुदाय आदि के भेदभाव भूल कर खुद के एवं सभी के विकास हेतु सदैव तत्पर रहना होगा।
धर्म जाति के नाम  से भेदभाव ना किए जाएं, क्योंकि निश्चित ही रूप से हम सभी एक ही ऊर्जा से संचालित है लोग अपने विश्वास के अनुसार उस ऊर्जा को अपने भगवान के रूप में मानते है। "

"ऊर्जा एक ही है रूप अनेक है। "


उस अदृश्य ऊर्जा मे विश्वास करें, जो दुनिया में एक है, लेकिन विभिन्न रूपों में। (Believe in that invisible energy, which is one in the world but in different form.)


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Shubham chourasia







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